जवानी के जोश में लोग अक्सर होश खो देते है
जवानी में बहुत कुछ करने की तमन्ना होती है. हर तमन्ना पे उम्मीद होती है.
जैसे जैसे समय बीतता है. और सच्चाई सामने आती है तो वो जोश ठंडा पड़ने लगता है
सारी उम्मीद धीरे धीरे खत्म होती है और उसी के साथ तमन्ना भी दम तोड़ देती है.
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जवानी के जोश में बहुत सपने सजाये थे. लेकिन उन सपने पुरे करने के लिए सारी महेनत बेकार हो गयी
में अक्सर अपने आप को अकेला महसूस करता था उस वक़्त।
“शाम ढले गगन तले
हम कितने एकांकी”
हाँ. लेकिन मेने कभी हिम्मत नहीं हारी। एक के बाद एक लड़ाई लड़ता गया और कभी हारता तो फिर खड़ा होके वापस लड़ाई लड़ता।
मेने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। एक के बाद एक सपने बिखरते गये, टूटते गये फिर भी में खड़ा रहा आरज़ू की कश्ती पे सवार होके।
कभी किसी का साथ मिला तो कभी किसी ने साथ छोड़ दिया। जब से होश संभाला तब से मेरे पिताजी, माँ, भाई सब एक एक करके साथ
छोड़ गये. लेकिन में डटा रहा ज़िंदगी की बाकि लड़ाई लड़ने के लिये। जो दोस्त थे वो भी स्वार्थी निकले हरेक जगह पे धोखा दिया फिर भी
मेने आस नहीं छोड़ी। कोई तो मिलेगा जो मुज़को समझेगा और मेरा साथ देगा इस उम्मीद में. आखिर उम्मीद पे ही ज़िंदगी कायम है.
” ज़िंदगी की राहो में
रंजो ग़म के मेले हे
भीर हे क़यामत की
फिर भी हम अकेले हे”
आखिर में सभी उम्मीद टूट गयी तो मेने नयी उम्मीद बनाने की कोशिश की. क्यों की में जानता हूँ की उम्मीद पे ही दुनिया है. जहां अपने ही
बेगाने निकले तो विश्वास भी किसपे करे. हर रिश्ता स्वार्थी निकला। सब को अपनी ही चिंता है और सब मुज़से ही उम्मीद लगा के बैठे है तो
में किससे उम्मीद करू? सब को अपनी ही फिकर है और अपने खुद के सपने हे. मेरे सपने और मेरी उम्मीद का कोई मूल्य नहीं है. मेरे
एक साहेब बहुत सही कह रहे थे “Who is interested in you? NOBODY is interested in you.” शायद वो सही थे.
दुनिया में तुम्हारे सपने, स्वार्थ, उम्मीद, आस में किसी को कोई दिलचश्पी नहीं है. सब अपना ही देखते है. इस स्वार्थी दुनिया में मतलबी लोग
अपने सपने में ही जीते है और हमारा सिर्फ इस्तेमाल करना जानते है. एक बार इस्तिमाल हो गया तो तुम बेकार हो उसके लिये। माँ बाप को छोड़ कर
दुनिया के हर रिश्ते सिर्फ मतलब के होते है. मेने तो कभी कभी माँ बाप का रिश्ता भी मतलब का देखा है. तुम किसी पे आस नहीं रख सकते सब
तुमसे आस रख सकते है. अगर तुम उनकी उम्मीद के बराबर नहीं निकले तो तुम स्वार्थी हो, नालायक हो. यही हालत मेरी भी हो गयी. इधर कोई आप को नहीं समझेगा आप सब को समझो। इधर कोई आप को नहीं पूछेगा आप उनको पूछो। कोई आप की भावना से साथ खेल सकता है कभी भी लेकिन अगर आप ने कोशिश की तो आप नालायक हो.
आभासी दुनिया के मतलबी लोग है इधर सब फ्री है सोशल मीडिया में. हकीकत की ज़िंदगी में किसी के पास आप के लिये समय नहीं।
“इक ऋतू आये इक ऋतू जाये
मौसम बदले ना बदले नसीब”
ज़िंदगी में बहुत ठोकर खाई, संभला में खुद ही. कोई नहीं आया मदद में. आज मेरी आखरी आस भी टूट गई तब जाके मेने ये पोस्ट
लिखना जरुरी समझा। इतनी चोट खाई की हिसाब रखना ही भूल गय, लेकिन लोगो ने हिसाब रखा. हर साथी छूट गया जो बचे हे उन्हों ने भी
सिर्फ अपना स्वार्थ ही देखा।
“ज़िंदगी एक फ़साना ऐ ग़म हे
मेरा तो इससे नाक में दम हे
तेरे कहने पे जी रहा हूँ ऐ खुदा
तुज़पे ये अहसान मेरा क्या कम हे”
बस अब ज़िंदगी के वो मुकाम पे हूँ जहां लोग आखरी सफर की राह देखते है. अब देखना ये है की वो राह भी कितनी देखनी है.
आज फिर से थोड़ा दिल भर आया तो भड़ास नीकाल दी और एक पोस्ट मेरे खुद पे भी डाल दी । चलो कल से वापस आप के लिये पोस्ट शुरु कर दूंगा।
जय हिंद
भारत माता की जय
Tags: ज़िंदगी के लिए २ शब्द, gitesh, gitesh trivedi
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